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रहस्यमाई चश्मा भाग - 23





दोनों परिवार पंहुच चुके थे मंगलम चौधरी आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प ले रखा था जब से उनको यह पता लगा कि शुभा उनकी सारिका अपने पूरे परिवार के साथ भारत कि स्वतंत्रता का अभिशाप ग्रहण उन्मादी दंगे में मारी जा चुकी है उन्होंने यह जानते हुए कि शुभा का गांव दरभंगा से इतनी ही दूरी पर है कि उस जमाने मे भी कोई भी जानकारी थोड़ा बहुत प्रायास करके हासिल की जा सकती है लेकिन मंगलम चौधरी दो महत्वपूर्ण कारणों से शुभा के पैतृक गांव के विषय मे नही सोचा एक तो अंग्रेजो से कौड़ियों के मोल खरीदे गए साम्राज्य कि जड़ो को मजबूत बनाने कि व्यस्तता के कारण दूसरा उससे भी महत्वपूर्ण कारण यह था कि उन्हें यह बात भली भांति पता थी कि नत्थू ने यशोवर्धन झा कि पारिवारिक सम्पत्ति अपने नाम करा लिया था!

भले ही न्यायालय ने निर्णय होने तक जब्ती कार्यवाही कर रखी हो जब यह स्प्ष्ट हो चुका की यशोवर्धन के परिवार का कोई बचा ही नही तो नत्थू ने न्यायलय के निर्णय भी अपने पक्ष में करा लिए होंगे ऐसी स्थिति में यशोवर्धन के पैतृक गांव जाना अपनी ही भद्द पिटने जैसा ही था जो बहुत हद तक सही भी था,,,

मंगलम चौधरी व्यवसायिक सोच के व्यक्ति थे युवा अवस्था के प्यार के लिए संकल्पित तो थे और उसकी कीमत उन्होंने आजीवन अविवाहित रहने के का संकल्प लेकर चुकाई थी ऐसा उनका मानना था उनको आभास तक नही हुआ कि उनकी संतान जो अविवाहित माँ से जन्मा था उस के लिए जिम्मेदार वह स्वंय थे उनका ही पुत्र उनसे मात्र कुछ ही दूरी लगभग सौ किलोमीटर पर भुखमरी लाचारी बेबसी तिरस्कार का जीवन जी रहा है और उनका प्रेम जो रुक्मणि कृष्ण सीता राम सावित्री सत्यवान जैसा था उंसे उन्होंने दुष्यंत कि तरह भुला दिया यह जानने की कोशिश तक नही किया कि यशोवर्धन परिवार के उन्मादी दंगे में समाप्त होने का विवरण सरकारी अभिलेख से भी सत्यापित किया जाए,,,

क्योकि भारत सरकार के अभिलेखो में यशोवर्धन सुलोचना संकल्प संवर्धन एव उनके सौ से अधिक कारिदों के मारे जाना तो दर्ज था लेकिन पुत्री शुभा को लापता बताया गया था शुभा के समक्ष चुनौती यह थी कि वह किसी भी कानूनी संघर्ष से पहले उसके पति का होना और पुत्र को पिता का ज्ञान होना आवश्यक है पढ़ी लिखी होने के वावजूद जब उसकी जन्मभूमि ने ही उसे बिन ब्याही माँ बनने पर कुलटा कुलक्षिणी जाने क्या क्या कहकर अपमानित किया,,,,

जाने कैसे कैसे आरोप मढ़े शुभा थी भी बेहद खूबसूरत उसी के मातृभूमि के मनचलों ने उसे बहुत प्रताड़ित किया नशेड़ी भंगेड़ी गजेडी निम्न स्तर के लोगो ने उसे अपनी वासना के लिए मजबूर करने की अनेको कोशिशें कि एक तो उसका कोई रखवाला नही था दूसरा वह बिन ब्याही माँ थी जो उसकी कमजोरी कहे या शक्ति जिसको आधार बना कर गांव के लम्पट उंसे आये दिन तंग करते रहते वह गोद सुयश को लिए भारतीय विरांगना की तरह लड़ती मंदिर के पुजारी तीरथ राज उसकी हिम्मत बढाते उनकी भी अपनी मकबूरी थी उनके मंदिर और उनका भरण पोषण गांव वालों की ही कृपा से होता जिसका कुछ हिसा वह शुभा को यह कहकर देते की यह दुखियारी भाग्य कि मारी मंदिर की साफ सफाई करती है जबकि उन्होंने शुभा से मंदिर कि साफ सफाई कभी नही करवाई,,,,,,,,,


जब गांव वाले तस्दीक करने की कोशिश करते तब कहते फजिरे शुभा मंदिर कि साफ सफाई कर देती है जबकि वह स्वंय मंदिर कि साफ सफाई करते । मंगलम चौधरी को बताया कि किस तरह शुभा बिटिया ने कलयुग में सर्वत्र दानवों से अपने को सुरक्षित बचाये रखा सिर्फ अपने राम के लिए अपने दुष्यंत के लिए अपने कृष्ण के उसके सब कुछ अपने विराज के लिये चौधरी साहब शुभा बिटिया के साहस दृढ़ता और समझदारी को दांत देता हूँ,,,,,

 उसका कायल हूँ । मैं उसे दुर्गा का साक्षात मानकर प्रत्येक नवरात पूजन करता जानते है चौधरी साहब क्यों ? मंगलम चौधरी खामोश रहे पंडित तीरथ राज की आंखों से अश्रुधारा बहने लगी रुंधे कंठ से बोले जब शुभा अपने पुरुखों के गांव में आई और उसे नार्गीय यातनाएं साहनी पड़ी अपमानित होना पड़ा कोई पत्थर मारता कोई कहता कि इसके गांव में रहने से गांव के लड़के लड़कियों के कही भी सम्बंध नही हो सकेंगे इसके रहने से समाज मे अवैध परम्पराओ का सिलसिला चल पड़ेगा यह सुनती पत्थर खाती भागती छिपती लेकिन बहुत मुश्किल था इसका बच पाना या रहना आमावश्या की रात घनघोर अंधकार प्रचंड गर्मी जैसे रात में भी लू चल रहा हो,,,,

 मैं मंदिर में बरामदे में सोने की कोशिश कर रहा था तभी मैंने किसी कि सिसकियों की आवाज सुनी लालटेन जलाया और उसके पास गया तो देखा यह तो वही औरत है जिसको गांव वाले गाली देते है पत्थर मारते है तब मैंने उससे कहा घबड़ाओ नही यह भगवान का दरबार है यहाँ सबको न्याय मिलता है किसी के साथ अन्याय नही होता डरो नही अब तुम्हारी रक्षा भगवान स्वंय करेंगे तब वह अभगिन उठी कांपते हुए डरी सहमी बोली गांव के कुछ मनबढ़ उसकी इज़्ज़त लूटने के लिए भयंकर अंधेरी रात में पीछे पड़े थे इस स्थिति में बहुत देर तक भाग भी नही सकती तब मैंने सवाल किया बेटी तुमने सिंदूर लगाया नही है अर्थात तुम बिन ब्याही हो ऐसे में तुम्हारे कोख में किसका बच्चा है वह बोली बाबा हम आपसे झूठ काहे को बोलेंगे हमे तो जान बचाना मुश्किल है उप्पर से मेरी कोख में नन्ही सी जान है!

जिसे मैं हर हाल में मर कर भी जन्म देना चाहती हूँ और जिसे मैं बिना लोक लाज के एक बेहतर परिवरिश दूंगी जैसा कि इसके पिता विराज है मैं इसे लावारिस काठ के बक्से में कर्ण की तरह नदी में या कबीर कि तरह तालाब के किनारे त्याग के जीवन पर अपने अचल अटल प्रेम का परिहाश नही करना चाहती मैं सनातन कि सत्यता प्रेम सारः तत्व को जीवंत रखूंगी भले ही मेरा कृष्ण राम दुष्यंत मुझे किसी विवशता में भूल जाए लेकिन मैं नही केवल उन्होंने मेरे मांग में सिंदूर ही तो नही भरा है आत्मा मन मस्तिष्क शरीर प्राण सब तो उन्ही के साथ है पत्थर तो उस शरीर को मारते है,,,,


जारी है




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6 Comments

kashish

09-Sep-2023 08:02 AM

V nice

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RISHITA

02-Sep-2023 10:00 AM

Amazing

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madhura

01-Sep-2023 10:55 AM

Awesome

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